मेरे लिए शहीद भगतसिंह के बलिदान दिवस पर यशपाल जी को याद करते हुए श्री राजेन्द्र राजन द्वारा स्थापित ‘विप्लवी पुस्तकालय’ तक आने का जो अवसर मिला है, वह हमेशा मेरी स्मृति का हिस्सा रहेगा साथ ही प्रगतिशील लेखक संघ के अधिवेशन का सारा कार्यक्रम और उभरे विचार, उम्मीद की जा सकती है कि इनसे एक नये मानवतावादी, सम्प्रदायवाद-विरोधी रचना पर्व का उदय होगा! बहुत सार्थक था यह सारा आयोजन।
गोदरगावाँ-बेगूसराय की इस धरती पर ऐसा अद्भुत पुस्तकालय देख कर मैं चकित हूँ! इस गाँव का यह दुर्लभ सत्य है! और एक विलक्षण अनुभव भी। नई से नई पुस्तक यहाँ उपलब्ध है-और कोई भी पाठक अपने लेखकों के चित्रें और रचनाओं से यहाँ मिल सकता है!
शहीद भगतसिंह की क्रांतिकारी-मानव न्यायवादी चेतना यहाँ व्याप्त है और कॉ. राजेन्द्र राजन ने उस क्रांतिकारी चेतना को सहेजा और परम्परा को जीवंत बनाया है।
देवी वैदेही सभागार का उद्घाटन करने का जो अवसर मुझे दिया गया, उसके लिए मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूँ!
अक्षत दीप स्तम्भ है यह पुस्तकालय! दिनकर जी को प्रणाम करते हुए---
पुनः आगमन-26-27 फरवरी, 04
एक वर्ष भी अभी पूरा नहीं हुआ, एक बार फिर विप्लवी पुस्तकालय गोदरगावाँ में आना और यहाँ के जागरुक ग्रामीण समाज से मिलना, पुस्तकों से मिलना एक सांस्कृतिक अनुभव है!
आज क्रांतिवीर चन्द्रशेखर आज़ाद का बलिदान दिवस है---और इस पुस्तकालय का वार्षिकोत्सव! यहाँ आता हूँ तो लगता है अपने घर आया हूँ, परिवार में आया हूँ। यहाँ आते ही बलिदानी भगतसिंह मिल जाते हैं, राहुल जी, दिनकर जी, नागार्जुन, यशपाल, निराला जी, प्रेमचंद, प्रसाद, रेणु आदि---आदि---से एक साथ मुलाकात हो जाती है।
बख्तियारपुर से गुजरा तो उस बिख़्तयार खिलजी का नाम याद आया जिसने पुस्तकालयों को जलाया था, नष्ट किया था---तो यहाँ अनुभव हुआ कि कॉú राजेन्द्र राजन ने इस पुस्तकालय की स्थापना करके कैसे निर्माण की परम्परा की पुनर्स्थापना की है---यही है क्रांतिधर्मी-विप्लवी परिवर्तनकामियों की परम्परा। विप्लव और आंदोलन की परम्परा---पटना से, राजमार्ग 31 से आया---राजेन्द्र सेतु पार किया तो गंगा मैया को देखा---गंगा क्षीण पड़ी हैं, हरित क्रांति का प्रतीक फर्टिलाइजर कारखाना बंद पड़ा है---थर्मल प्लांट की सांसें भारी हो रही हैं, भूमण्डलीकरण और विनिवेशीकरण के इस दौर में कब थर्मल प्लांट और बरौनी कारखाने की साँसें उखड़ जाएंगी, मालूम नहीं---लघु उद्योगों के कारखाने बंद पड़े हैं---वृक्षों पर अमरबेलें पसर रही हैं---
लेकिन गंगा के पुल से आगे बढ़ा तो सिमरिया जानेवाले मार्ग का दिनकर द्वार दिखा, लगा कि सृजन का संसार भी मौजूद है और गोदरगावाँ पहुँचते ही सृजन के साथ आंदोलन का यह सांस्कृतिक तीर्थ मिला और यह अनुभूति प्रगाढ़ हुई कि ‘सपना अभी बाकी है!’ और यह सपना पूरा होकर रहेगा! आिख़र चन्द्रशेखर आज़ाद का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा-
प्राचीन नालंदा नहीं रहा, पर अब हमारे पास शब्द-संस्कृति का आधुनिक गोदरगावाँ तो है!
मैं यहाँ फिर आऊँगा---हमेशा आता रहूँगा!
स्वतंत्रता संग्राम में गोदरगावाँ के लोगों के पराक्रम की स्मृति में बना यह विप्लवी पुस्तकालय अपने देश के स्वतंत्र रहने के निश्चय का जीता-जागता उदाहरण है। भविष्य में जब इस स्वतंत्रता को कोई खतरा पैदा हो उसे मिटाने की शक्ति और निश्चय इस पुस्तकालय से मिलनी चाहिए। स्वतंत्रता के इस पुण्य पीठ पर आकर मैं प्रेरित और धन्य हुआ।
कागद कारे
तुझ-सा न सिमरिया घाट अन्य
बेगूसराय से आठ किलोमीटर दूर गोदरगावां है जहां का विप्लवी पुस्तकालय पूरे हिंदी इलाके में मिसाल बना हुआ है। जब तक आप उसे खुद न देख लें विश्वास नहीं कर पाएंगे कि ऐसे धुर देहात में ऐसा पुस्तकालय भी हो सकता है, जहां आप हाल ही निकली कोई किताब देख-पढ़ सकें। जनता के स्वतंत्र अभिक्रम से क्या हो और चल सकता है इसका भी विप्लवी पुस्तकालय अच्छा उदाहरण है।
(साभार-6 जनसत्ता, दिल्ली 28 सितंबर)
विप्लवी पुस्तकालय इस क्षेत्र में अपने ढंग का अद्वितीय और प्रेरणादायक विद्या केन्द्र है। इसके शुभारम्भ के अवसर पर उपस्थित होकर मैं कृतार्थ हुआ। इसमें चुनी हुई आकृतियों और श्रेष्ठ ग्रंथों के संग्रह के साथ-साथ कम्प्यूटर आदि का आधुनिक उपकरणों के संसाधन भी सुलभ है। ऐसे सुविधा सम्पन्न ग्रंथागार की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूँ।
इस ग्राम के पुस्तकालय में देश-विदेश के साहित्यकारों को एक बार ज़रूर आना चाहिए। यहाँ आने से प्रेरणा मिलती है। यह पुस्तकालय नए भारत निर्मात्री चेतना का प्रतीक और हमारी सांस्कृतिक चेतना का संकेत करने वाला। ऐसा कार्य राजेन्द्र राजन जी की देशभक्ति और जन-सेवा की प्रवृति के बगै़र संभव नहीं था। हमें प्रसन्नता है कि हम यहाँ आए और अपनी आँखों से उदीयमान ग्रामीण भारत का सजीव रूप देखा। अगर यह बात कोई करता तो सहसा विश्वास नहीं होता। आशा है कि यह विप्लवी पुस्तकालय दिनोदिन विकसित होगा।
पुनः आगमन - 26 फरवरी, 2007
गोदरगावाँ सांस्कृतिक तीर्थ है। वह नए भारत को प्रेरणा देता है। हमें यहाँ बार-बार आना चाहिए। इससे कर्मठ बने रहने में सहायता मिलेगी।
पुनः आगमन - 11 अप्रैल, 2008
मैं प्रगतिशील लेखक संघ के 14 वें सम्मेलन में भाग लेने गोदरगावाँ आया। हाँ मैं तीसरी बार आया हूँ। मुझे यह देखकर प्रसन्नता हुई कि गोदरगावाँ का विप्लवी पुस्तकालय पहले से भी बेहतर स्थिति में है और राजेन्द्र राजन जी तथा उनके सहयोगी विशेषतः श्रीमती स्वाती गोदर उत्साह एवं मनोयोग से काम कर रहे हैं। यहाँ आतिथ्य में कोई कमी नहीं थी। यह भाव और बोध सिर्फ मेरा नहीं सभी प्रतिभागियों का था। देश में गोदरगावाँ जैसे विप्लवी पुस्तकालयों और संस्थानों की बहुत जरूरत है।
पुनः आगमन - 22 सितम्बर, 2008
गोदरगावाँ विप्लवी पुस्तकालय ग्रामीण संस्कृति का प्रतिमान है। वह केवल पुस्तकालय नहीं, संस्कृति प्रसार केन्द्र है। यह संस्थान श्री राजेन्द्र राजन के कुशल प्रबंधन-क्षमता से भलीभांति दिनोदिन उन्नति कर रहा है। यह संस्कृति संगम ही बन गया है। भारत के गाँव-गाँव में ऐसे पुस्तकालय खुलने चाहिए।
"बाबा विश्वनाथ के लिखने के बाद प्रभाष जोशी के लिखने की क्या जरूरत है
-प्रभाष जोशी/22 सितम्बर, 2008"
पुनः आगमन - 27 फरवरी, 2009
यह मेरा सौभाग्य है कि इस पुस्तकालय में अनेक बार आ चुका हूँ। हर बार मुझे नई स्फूर्ति एवं प्रेरणा मिलती है। इस भूमि की अपनी प्रेरणादायक परम्परा है। वे जितनी कुशलता से इस संस्था का प्रबन्धन कर रहे हैं वह स्तुत्य है। मेरे गुरु आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने बहुत पहले लिखा था कि देश में जगह-जगह पुस्तकालय खुलने चाहिए। इससे देश में नई चेतना का संचार होगा। श्री राजेन्द्र राजन द्वारा संचालित यह पुस्तकालय उस कार्य को भरसक कर रहे हैं।
जो सौभाग्यशाली होते हैं उन्हें ही यहाँ प्रणाम करने का अवसर मिलता है।
विप्लव ग्रंथालय इतिहास, दर्शन और विचार से रोशनी दिखाता, एक जीवंत जगह है।
मैं एक आत्मिक उजला विचार, प्रतिबद्धता का लेकर लौट रहा हूँ।
अन्धकार में एक अविश्वसनीय नक्षत्र की तरह है, गोदरगावाँ। ध्रुव तारे की तरह, सूर्य की तरह जगमगाता हुआ। अंधेरे के महासागर में उम्मीद के द्वीप की तरह। मैं बार-बार यहाँ आना चाहता हूँ।
विप्लवी पुस्तकालय को देखना मेरे जीवन का एक अद्भुत अनुभव है। इसका इतिहास तो मन को आंदोलित करता ही है लेकिन वर्तमान स्वरूप और यहाँ आए हिन्दी के अनेक महत्त्वपूर्ण लेखकों की छवियाँ एक अनुभव है। मैं सचमुच आभारी हूँ कि मुझे यहाँ आने का अवसर मिला। भगत सिंह की शहादत दिवस के कार्यक्रम में शामिल होकर अभिभूत हूँ।
बेगूसराय में क्रांति की लाल गंगा बहती है। गोदरगावाँ उसका एक घाट है और विप्लवी पुस्तकालय ज्ञान गंगा का मंदिर। यहाँ आकर इसी जन्म के सुकृतों का पुण्य लाभ मिला।
बेगूसराय में क्रांति की लाल गंगा बहती है। गोदरगावाँ उसका एक घाट है और विप्लवी पुस्तकालय ज्ञान गंगा का मंदिर। यहाँ आकर इसी जन्म के सुकृतों का पुण्य लाभ मिला।
गोदरगावाँ (बेगूसराय) में विप्लवी पुस्तकालय आना निसंदेह प्रेरक अनुभव है। संभवतः पूरे देश ऐसी कोेई दूसरी जगह नहीं है। पुस्तकों, साहित्य और अपनी विरासत के प्रति यह जज्बा, लगाव बहुत महत्त्वपूर्ण है। गाँव के लोग, महिलाएँ, बच्चों, किसान-मजदूर जिस प्रकार इस संस्था को अपना मानते हैं, वह अनुकरणीय है। खासकर बच्चे जिस तरह जुड़ाव रखते हैं, वह बहुत आश्वस्त करने वाला है।
जो भी एक बार यहाँ आए, वह बार-बार लौटना चाहेगा। मैं यहाँ आकर समृद्ध होकर लौट रहा हूँ।
आज दिनांक 19 जून, 2018 की तिथि मेरे अबतक के जीवनकाल में एक अविस्मरणीय दिन के रूप में सदैव अंकित रहेगी। बेगूसराय जिले में ‘विप्लवी पुस्तकालय’ में आना, यहाँ साहित्य-संस्कृति-इतिहास एवं समाज का समावेश देखना एक अद्भुत अनुभव रहा। राजेन्द्र राजन जी ने अपने उत्कट प्रयास एवं जनसहयोग से जो सांस्कृतिक इमारत खड़ी की है, वह राज्य ही नहीं पूरे राष्ट्र स्तर पर अपना उदाहरण स्वयं है। बेगूसराय के जिलाधिकारी के रूप में यदि अपने कार्यकाल में इस पुस्तकालय हेतु कुछ सकारात्मक योगदान दे पाया, तो मेरे लिए अत्यंत संतुष्टि एवं हर्ष की बात होगी।
पुनः आगमन - 17 अगस्त, 2019
आज दूसरी बार विप्लवी पुस्तकालय आने का संयोग बना। दिल्ली के पुराने मित्र श्री सर्वेश कुमार एवं गौरव श्रीवास्तव के बेगूसराय आगमन के उपरांत इन्हें जिले मेें भ्रमण कराने की सोच रहा था। ऐसे में विप्लवी पुस्तकालय से बेहतरीन जगह मुझे कोई और नहीं लगी और संयोग से सदैव प्रवास में रहने वाले श्रद्धेय श्री राजेन्द्र राजन भी उपलब्ध थे। फिर क्या था, साहित्य-संस्कृति-इतिहास की इस अद्भुत त्रिवेणी के दर्शन का कार्यक्रम धराल पर उतर गया। आशा के अनुरूप ही मेरे मित्रद्वय पुस्तकालय में आकर अभिभूत हैं। जिस तरीके से विप्लवी पुस्तकालय का रखरखाव किया गया है, इसमें लगभग 90 वर्ष का इतिहास जीवंत हो उठता है एवं ऐसा लगता है कि पुस्तकालय एक सजीव प्राणी की भांति हमारे बीच उपस्थित है। साहित्य अनुरागियों के अतिरिक्त अन्य सुधीजनों के लिए भी तीर्थस्थल है यह पुस्तकालय एवं विशेषकर बदली परिस्थितियों में जब समय/समाज में प्रश्न की संस्कृति गायब हो रही है, यह पुस्कालय अपने नाम के अनुरूप ही (मुख्यद्वार पर सज्जाद ज़हीर एवं भगत सिंह की उक्तियों के साथ) वर्तमान पीढ़ी को प्रश्न करने के लिए, जिंदा रहने के लिए प्रेरित कर रहा है, ललकार रहा है-
‘‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे’’
‘विप्लवी पुस्तकालय’ में मेरा आगमन प्रेरणादायक अनुभव रहा। क्रांति और इसका स्वप्न पुस्तकों और विचारों से अविभाज्य रूप से जुड़ा होता है।
अभिभूत हूँ ऐतिहासिक संदर्भ से और महसूस करता हूँ। ये एक ‘‘मॉडल’’ पहलकदमी हो सकता है। मैं इस पुस्तकालय को और बेहतर करने की जो भी कोशिश होगी करूँगा। पुस्तकालय संचालन समिति और समस्त ग्रामवासियों को साधुवाद और क्रांतिकारी अभिनन्दन।
बहुत अच्छा लगा। आगे भी यह प्रयास प्रेरणा दे यह उम्मीद है।
मैं बीरेन्द्र सिंह, पिता-तेज बहादुर सिंह ग्राम$पो--भदार, जिला-बक्सर (बिहार) का निवासी हूँ। मैं विप्लवी पुस्तकालय जब पहली बार आया तो ऐसा लगा मैं जिस ज्ञान प्यास को ढूंढ़ रहा था, वह यहीं है। जो व्यवस्था, स्नेह यहाँ मिला किसी पुस्तकालय में नहीं मिला। यहज्ञान का वह समुद्र है जिसका एक बूँद पानी भी पीने से मानव और समाज का जो कल्याण होगा वो कहीं से नहीं होगा। कहावत है एक पुस्तकालय खुलने से सौ जेल बंद हो जाता है। अध्ययन भी ईश्वर की उपासना ही है, क्योंकि बिना पढ़े न तो विचार में क्रांति होती है न ही समाज में। मैं विगत 7 वर्ष से आ रहा हूँ। जैसे कोई मंदिर में आता है। मेरे लिए पुस्तकालय मंदिर और पुस्तक आत्मा है।
विप्लवी पुस्तकालय में पुनः आना
उम्मीदों का हरा हो जाना है
गर्व से सीना तन जाना है
इस समय के विरुद्ध मुट्ठियों का बँध जाना है
गाँव से गाँव का मिल जाना है
परिवर्तन के लिए दीप जो जल रहा
उससे मिल जाना है।
गोदरगावाँ में भ्रष्टाचार के कलियुग में सत्ययुग का थोड़ा दर्शन हुआ।
यहाँ आकर बहुत मजा आया।
शानदार अनुभव। बार-बार आते रहेंगे, कन्हैया की कसम
विप्लवी पुस्तकालय देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ। इसकी पुस्तकों का संग्रह अप्रतिम है। यह एक अद्भुत स्थान है। ऐतिहासिक धरोहर है। मैं उम्मीद करता हूँ इस प्रकार के पुस्तकालयों की शृंखला विकसित होगी। सुझाव है कि Electronic Library भी इसमें जोड़ी जाय। यह प्रेरणा का स्थान है। मेरे लिये बहुत प्रेरक अनुभव रहा।
बेगूसराय पहली बार आया था तो गोदरगावाँ के इसी पुस्तकालय में और दस साल बाद आज आया तो यहीं घूमने की इच्छा हुई। यह पुस्तकालय आकर्षित करती है।
विप्लवी पुस्तकालय में आकर एक अलग ढंग का अनुभव कर रहा हूँ। जिस ढंग से पुस्तकालय की व्यवस्था है, देखकर बहुत ही अच्छा लगा। ऐसा लग रहा है कि शहर-गाँव की दूरी को कम करने का प्रयास सफल हो सकता है, यदि इस तरह की संस्था सारे बिहार में स्थापित हो।
सारे बिहार के लिए विप्लवी पुस्तकालय एक अनुसरणीय संस्था है। मेरा ख्याल है कि इसके बारे में बिहार के सभी गाँवों और कस्बों को जानकारी दी जानी चाहिए।
आज 31 जुलाई, 2005 प्रेमचंद की 125वीं जयन्ती के अवसर पर गोदरगावाँ स्थित विप्लवी पुस्तकालय में आगमन हुआ। इस पुस्तकालय ने इस दिन को और भी अविस्मरणीय बना दिया। कहा जा रहा है कि कम्प्यूटर और मीडिया-विस्फोट के युग में पुस्तकों का महत्त्व क्षीण होगा। इस पुस्तकालय को देखकर ऐसा कहने वाले लोगों को जवाब देने का साहस बना। जबतक भारत के गाँवों में पुस्तक प्रेमी लोग रहेंगे पुस्तकों और सांस्कृतिक प्रेम की भावना जीवित रहेगी। यह और भी सुखद है कि इस काम को कम्युनिस्ट राजेन्द्र राजन ने किया। आशा है यह पुस्तकालय निरंतर प्रगति करेगा और मूक जनता को वाणी देने में सक्षम होगा।
पुनः आगमन - 26 फरवरी, 2007
आज 26 फरवरी, 07 को पुनः गोदरगावाँ आगमन हुआ। इस बार पिछली स्मृति थी, उत्साह था और फिर आने का बढ़ा हुआ आकर्षण भी। इस पुस्तकालय से अब एक आत्मीय जुड़ाव है और इसकी गौरवशाली परम्परा के प्रति श्रद्धा भाव भी। यह गाँव यदि भारत के गाँवों का आदर्श बन सके तो हम न जाने कितनी समस्याओं से मुक्त होंगे।
‘विप्लवी पुस्तकालय’ देखकर यह विश्वास जगा कि भारत के गांवों में ज्ञान की किरणें छिटक रही है। इस पुस्तकालय की व्यवस्था और सुरुचिपूर्णता का कायल हुआ। इसके लिए 2500/-रु. की पुस्तकें तथा पत्रिकाएँ देने में प्रसन्नता का भान हो रहा है।
मेरी अनेकानेक शुभकामनाएँ।
‘विप्लवी पुस्तकालय’ ने मुझे रोमांचित कर दिया। एक गांव में ऐसा पुस्तकालय आज कल्पना से परे मालूम होता है। लेकिन यह पुस्तकालय ग्रामीण भारत और समाज की अद्भुत रचनाशक्ति का प्रमाण है। यह सिर्फ एक पुस्तकालय नहीं है बल्कि उस विप्लवी की याद है जिसे भारत में अभी पूरा होना बाकी है।
गोदरगावाँ के प्रसिद्ध पुस्तकालय तथा पूरे सांस्कृतिक परिसर को देखकर प्रभावित हुआ-किसी सीमा तक अभिभूत भी। यह यहाँ की जनता के सामाजिक-राजनीतिक तथा बौद्धिक उन्मेष का परिचायक है। जिस प्रकार इस पूरे सांस्कृतिक अभियान का संचालन किया जा रहा है, वह विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उसमें मुझे लोकतांत्रिक चेतना का विश्वसनीय प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ा। गोदरगावाँ-क्षेत्र की जनता का यह अभिनव जागरण-प्रयास, पूरे हिन्दी ग्रामीण क्षेत्र के लिये एक प्रकाश-स्तम्भ बने-यही कामना है।
विप्लवी पुस्तकालय को आज फिर देखने का सुअवसर मिला। यहाँ जाना हमेशा प्रसन्नता और प्रेरणा का कारण बनता है। यह केवल पुस्तकालय यानी पुस्तकों को रखे रहने का घर नहीं यह वास्तव में एक सांस्कृतिक केन्द्र है, यह उससे भी आगे सामाजिक जागरण का अभियान है। मैं कामना करता हूँ कि यह केन्द्र यह अभियान दिनानुदिन आगे बढ़े, जनता में नयी चेतना जगाए और अधिकाधिक लोगाें तक रोशनी फैलाए।
पुनः आगमन-11 अप्रैल, 08
गोदरगावाँ मेरा आत्मीय गाँव है। बार-बार आता रहा हूँ खिंच कर। वह आकर्षण प्रलेस के चौदहवें अधिवेशन से बढ़ ही गया है।
गाँव में लेखकों का आना बड़ा प्रेरक माना गया है। लेखकों ने गाँव देखा, गाँव में शहर का सुख भोगा। विप्लवी पुस्तकालय देखा।
अब मैं सोच रहा हूँ कि इन सबसे लेखकों में ग्रामोन्मुखता कितनी बढ़ी, विप्लव की चेतना कितनी बढ़ी, यह देखा जाएगा।
लेकिन इस अधिवेशन के आयोजकों, स्वागतकर्मियों, तमाम इन्तजामकारों को हार्दिक धन्यवाद और बधाई। इनमें साहित्य जैसी मानवीय संवेदनशीलता और बढ़े सृजनशीलता बढ़े-इसी कामना के साथ।
पुनः आगमन-24 मार्च, 09
आज तिवारा गोदरगावाँ स्थित विप्लवी पुस्तकालय में आने का सुअवसर मिला। यहाँ आना हमेशा उत्साहवर्द्धक होता है। पुस्तकें कभी दगा नहीं देती, वे हमेशा मानसिक और वैचारिक संकट के समय साहस देती हैं, प्रेरणा देती हैं, बशर्ते हम अच्छी पुस्तकें पढ़ें। पुस्तकें पाठकों को बुलाती रहती हैं। जैसे मनुष्य को खाना, कपड़ा, मकान चाहिए, शिक्षा चाहिए, उसी तरह पुस्तकों को पाठक चाहिए। सभी पाठक पुस्तक खरीद नहीं सकते। पुस्तकालय उनकी जरूरत पूरी करता है।
विप्लवी पुस्तकालय को पाठक उपलब्ध हैं, यह मुख्य बात है। पुस्तकालय में अच्छी और मूल्यवान पुस्तकों का बहुत अच्छा संग्रह है, जिसका उपयोग करके कोई भी ख्याति अर्जित करने वाला विद्वान् और विचारक बन सकता है। यहाँ आकर मैं बहुत खुश हूँ। आने का अवसर देने के लिए काú राजेन्द्र राजन को धन्यवाद।
विप्लवी पुस्तकालय को देखकर लगता है कि पुस्तकें केवल ज्ञान ही नहीं बढ़ाती-सामान्य जनता के जीवन को क्रमशः बदल भी सकती है। यह पुस्तकालय अपने ढंग से आस-पास के लोगों के सोच को बदल रहा है, यह देखना रोमांचक है। इसके पीछे निश्चय ही कर्मठ कार्यकर्ता श्री राजेन्द्र राजन का विज़न और परिश्रम है-उन्हें गाँव के लोगों के बीच भ्रम की महत्ता और आपसी भाईचारा स्थापित किया है, वैज्ञानिक दृष्टि का विकास किया है और आधुनिक वैज्ञानिक सुविधाओं को स्थानीय जीवन का हिस्सा बनाया है, उसके लिए यह क्षेत्र उनका ऋणी होना चाहिए। विश्वास है उनका यह क्रांतिकारी कार्य निरन्तर विकसित और विस्तृत होता रहेगा।
‘विप्लवी पुस्तकालय’ तथा देवी वैदेही सभागार एवं सूरज-चाँद अस्पताल-ये तीनों केन्द्र जनहित तथा सांस्कृतिक क्रियाकलाप एवं चिकित्सा के ऐसे स्थल हैं जो हमें अद्भुत रूप से उत्साहित और रोमांचित कर गये हैं। राजेन्द्र राजन जैसे जननेता का यह महान् कार्य है जिससे हर सामाजिक कार्यकर्ता और संस्कृतिकर्मियों को प्रेरणा लेनी चाहिए। विप्लवी पुस्तकालय, सभागार तथा चिकित्सा प्रतिष्ठान के रखरखाव की जिम्मेवारी निभाने वाले सभी नौजवानों को उत्सर्ग भावना और कर्मठता का भी हमलोग कायल हैं। इन प्रतिष्ठानों के लए देश के कोने-कोने से मदद मिलनी चाहिए और ऐसी ही मिसाल हर जननेता को कुछ करने का आमंत्रण भी देती है।
विप्लवी पुस्तकालय के कार्यक्रम में शरीक होकर मैं धन्य हो गया। यह पुस्तकालय जिस तरह भगतसिंह की याद में हैं उन्हें समर्पित है, आंचलिक क्रांतिकारियों को स्मृति से जुड़ा है, मीराबाई की स्मृति से बना है-वह एक क्रांतिकारी विरासत को सजीव करने की क्षमता रखता है। विचार और संस्कृति का संगम तथा इसके साथ जनता की सम्बद्धता आदर्श है। मुझे लगता है कि इस तरह के विश्वविद्यालय खुले रंगमंच में गाँव-गाँव में बनने चाहिए। यह पुस्कालय अपने निहितार्थ में विश्वविद्यालय की मानिन्द है। मैं इसके कर्ता-धर्त्ताओं को बधाई देता हूँ।
विप्लवी पुस्तकालय ग्रामीण क्षेत्रें में पुस्तकालय आन्दोलन के संदर्भ में एक आदर्श प्रयोग माना जायेगा। पुस्तकालय को देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई क्योंकि यह ज्ञान, रोज़गार और जीवन की अन्य आवश्यकताओं से भी जुड़ा हुआ है। मेरे विचार से सभी सरकारी तथा गै़र सरकारी संस्थाओं को जो ग्रामीण क्षेत्रें में पुस्तकालय स्थापित करने तथा उनको बढ़ावा देने से जुड़ी हैं विप्लवी पुस्तकालय की सहायता करना चाहिए।
पुस्तकालय को अधिक उपयोगी बनाने के लिए यहाँ इंटरनेट की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए जिसके माध्यम से न केवल उच्चकोटि का साहित्य प्राप्त किया जा सकता है बल्कि पाठक नवीनतम् जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं।
मैं पुस्तकालय के सभी कर्मियों, संस्था के पदाधिकारियों को बधाई देता हूँ और कामना करता हूँ यह आन्दोलन आगे बढ़ता रहेगा।
‘विप्लवी पुस्तकालय’ तथा देवी वैदेही सभागार को देखना मेरी जिन्दगी का एक अविस्मरणीय अनुभव है। इस जनपद में आना और यहाँ आपके नेतृत्व में जनोन्मुख कार्यक्रमों में-वैचारिक संघर्षांे मेंं पुस्तकों के महत्त्व को जनता के बीच सजग प्रयास के रूप में स्थापित कर रहे हैं-यह एक दूरगामी और स्थायी प्रभाव उत्पन्न करेगा।
यह प्रयास अभिनंदनीय और अनुकरणीय है। शहीद भगतसिंह को समर्पित यह पुस्तकालय ‘विचारों एवं संघर्षों की धार’ को तेज करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
‘देवी वैदेही सभागार’ स्त्रियों एवं लड़कियों के सांस्कृतिक, वैचारिक एवं व्यावसायिक रोजगार से जुड़े, शिक्षा केन्द्र के रूप में विकसित हो-यही मेरी शुभकामना है।
गोदरगावाँ आकर रोमांचित हूँ। भय, भूख, भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गया है-बिहार। ऐसे प्रदेश में विप्लवी पुस्तकालय एवं इसके अन्तर्गत संचालित विभिन्न गतिविधियाँ रोमांचित ही तो करती हैं! विराट रेगिस्तान में शीतल छांव एवं जल से भरपूर गोदरगावाँ मेरे लिये अत्यन्त सुखद अनुभूति है। काश, यह संदेश सारे बिहार तक जाता!
बंदूक के विकल्प के रूप में पुस्तक की संस्कृति का संदेश देता है गोदरगावाँ। यहाँ के हिंदू, मुसलमान तथा कथित उच्च वर्ग एवं दलित जाति के लोग एक परिवार की तरह रह रहे हैं। यह सब साक्षात नहीं देखा होता तो विश्वास नहीं होता।
मैं तो अभिभूत हूँ। यहाँ आकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हूँ।
साथी राजेन्द्र राजन एवं इनके सहयोगी साधुवाद के पात्र हैं! मैं गोदरगावाँ के लोगों को नमन करता हूँ। मेरा भरसक प्रयत्न होगा यहाँ का संदेश देश के अन्य क्षेत्रें तक पहुँचाने का।
आजादी की लड़ाई की पैदावर यह पुस्तकालय आने वाली नस्ल को उचित रौशनी प्रदान करेगी यह उम्मीद है। किसी गाँव में इस तरह का संस्थान एक बड़ी उपलब्धि है।
प्रगतिशील लेखक संघ के 14 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में सम्मिलित होने के क्रम में गोदरगावाँ को पहली बार देखा। मैं इस संपूर्ण भारतीय गाँव को देखकर अचंभित और प्रसन्न हुआ, इसने मेरे अपने गाँव का याद दिला दिया, जिसे मैंने आज से 45 वर्ष पूर्व शिक्षा और ज्ञान की खोज में छोड़ चुका हूँ। इसने ग्रामीण जीवन के अच्छे बुरे दिनों की स्मृतियों को जगा दिया, खासकर गरीबी झेलते लोग। स्थानीय लोगों की मेहमानबाज़ी और सत्कार की भावना मेरे लिए गौरव की बात है। यह एक महान प्रयास है कि वे एक बड़े पुस्तकालय की स्थापना बहुत ही पिछड़े ग्रामीण क्षेत्र में उनके ज्ञान और गुण में विस्तार देने के लिए की है। साथ ही लेखकों के इतने बड़े सम्मेलन, जिसका आयोजन यहाँ किया जा सका, अद्भुत, आनंदित किया। यह इतना आसान नहीं था। मैं भविष्य में यहाँ एक बार और आने की आंतरिक इच्छा एवं प्राप्त स्मृतयों के साथ वापस जा रहा हूँ।
गोदरगावाँ जैसे दूर दराज के ग्राम्यांचल में स्थित सुव्यवस्थित पुस्तकालय और सामने स्थित भव्य सभागार को देख कर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। पहली बार एक गाँव में राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक संघ के 14वें सम्मेलन का सफल आयोजन आयोजकों की निष्ठा, समर्पण और दृढ़ संकल्प का परिणाम है। सुव्यवस्थित एवं सफल आयोजन के लिए आयोजकों को बहुत-बहुत बधाई।
मैंने अपने अन्य साथियों, रवीन्द्र भारती, राजेन्द्र, टी- एस- नटराजन और अजय कुमार घोष के साथ पुस्तकालय को देखा। यह अद्भुत बहुत अधिक किताबों का संग्रहालय है। हम बहुत प्रसन्न हैं। सुब्रह्मण्यम भारती पर भी एक किताब इस पुस्तकालय में मौजूद है। महापुरुषों के कविताएँ मेरी भावनाओं को उद्दीप्त किया है। वास्तव में यह हमलोगों के लिए एक विशेष सुविधा है। मैं श्री राजेन्द्र राजन को धन्यवाद देता हूँ, जो हमें चारों ओर ले गये और विभिन्न उपखण्डों की व्याख्या की।
विप्लवी पुस्तकालय के वार्षिकोत्सव को मैं सांस्कृतिक-जागरण का अश्वमेघ-यज्ञ मानता हूँ और इसीलिये यहाँ आकर पुण्य का अनुभव करता हँू। जिस भांति से इसका रख-रखाव और व्यवस्था हो रही है, शायद हम अपने घर की व्यवस्था करते हैं।विप्लवी पुस्तकालय इस क्षेत्र की सबसे बड़ी जागीर है और इसे लोक-शिक्षक एवं लोक-संस्कृति का यशस्वी केन्द्र बने-यही शुभकामनायें हैं।शुभस्ते पंथानःपुनः आगमन-24 मार्च, 98कहावत है कि जिस व्यक्ति या संस्था का विकास नहीं होता है, वह मर जाता है। ‘विप्लवी पुस्तकालय का पिछले 10 वर्षों का विकास हुआ है, यह इन बात कि द्योतक है कि यह प्राणवान एवं जीवन्त है।हर वर्ष पुस्तकालय सांस्कृतिक जागरण के लिये कुछ ठोस संरचनात्मक कार्यक्रम पर विचार करे, जैसे
1- प्रति सप्ताह या पाक्षिक रूप से जो संभव हो एक स्वाध्याय केन्द्र चलाया जाय।
2. विचार-गोष्ठियों को अधिक संख्या में आयोजित किया जाय। संभव हो तो माह में एक गोष्ठी अवश्य हो।
3- महिलाओं को पुस्तकालय के प्रबन्धन एवं उपयोग में अधिकाधिक लाया जाय।अगले वार्षिकोत्सव के अवसर पर सरदार भगतसिंह के विचारों का एक छोटा दस्तावेज प्रकाशित किया जाय।
विप्लवी पुस्तकालय जो एक ऐतिहासिक संस्थान है और हमारे राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम की उपज है, इसको देखना मेरे लिए परम आनन्ददायक है। मुझे पूरा विश्वास है कि संस्थान इस क्षेत्र के जन-गण को सदैव देशभक्तिपूर्ण कर्त्तव्यों के लिए आलोकित एवं प्रेरित करता रहेगा।
गोदरगावाँ का विप्लवी पुस्तकालय एक अद्वितीय चीज है। इसे जिसने नहीं देखा उसने कुछ नहीं देखा। यह पुस्तकालय और इसका सभागार देखकर यह लगता है कि अब भारत इंडिया को दबा रहा है। यह इस क्षेत्र के सांस्कृतिक जागरण का नामिक बन गया है। इतनी सुरुचि के बीच हजारों लोग आदि से अंत तक गोष्ठी में बैठे रहे यह एक अद्वितीय घटना है। यहाँ आकर, इसे देखकर मैं, कृतार्थ हुआ। अद्भुत देखा, अद्भुत सुना।
विप्लवी पुस्तकालय और सभागार की परिकल्पना के वैचारिक स्रोतों को मैं समझने की कोशिश कर रहा हूँ। सतत् सांस्कृतिक आंदोलन की प्रेरणा इसमें दिखाई देती है। पुस्तकालय महज किताबों के बैंक नहीं होते, वे जीवंत बहस के प्रमुख केन्द्र होते हैं। किताबें उन बहसों की गति को तेज करती हैं। इतिहास को विकसित करने का औजार बनती है। लेकिन यह प्रक्रिया तब ठप्प पड़ जाती है जब इतिहास के पन्नों को दबाने की कोशिश होती है। मैंने कई पुस्तकालय देखे हैं जहाँ मुद्रण प्रद्यौगिकी के विकास की गाथा तो वहाँ पड़ी ऐर सारी किताबें करती है लेकिन बहस की प्रक्रिया पर धूलें जम गई है, लिहाजा वह समाज के पुस्तकालय के रूप में स्वीकृत नहीं है। इस गांव में जीवंत बहसें हो रही है तो इसका सामान्य अर्थ यह निकाला जाना चाहिए कि किताबें अपनी भूमिका अदा कर रही है। मैं सुझाव देना चाहता हूँ कि इस पुस्तकालय और सभागार पर एक छोटी-सी फिल्म बनाई जाएं और उसकी सीडी जगह-जगह भेजी जाए ताकि देश में ‘गोदरगावाँ’ की एक शृंखला खड़ी करने में हम सबको मदद मिल सकें।
विप्लवी पुस्तकालय देखने का मौका मिला, सुंदर संग्रह है और इसके सदस्यों में बड़ा उत्साह है। मुझे आशा है कि इस क्षेत्र को जगाने में यह अग्रणी का काम करेगा।
बौद्धिक सक्रियता और व्यावहारिक जीवन का यह संगम अतुलनीय है। मैंने व्यक्तिगत रूप से ऐसी सक्रियता शायद ही और कहीं देखी हो। कम-से-कम हिन्दी भाषी क्षेत्रें मेें जहाँ आज जड़ता अपने चरम पर है इस प्रयोग और प्रतिबद्धता से बहुत कुछ सीख सकते हैं। मैं स्वयं इस प्रयोग से प्रेरणा लेकर जा रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ अपने गांव में गोदरगावाँ के विप्लवी पुस्तकालय की लौ को जगा पाऊँगा।
मैं विप्लवी पुस्तकालय से जुड़े सभी लोगों को प्रणाम करता हूँ।
विप्लवी पुस्तकालय स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार की जनता की प्रतिभागिता तथा बिहार के नवजागरण आंदोलन का शानदार प्रतीक है। ऐसे कठिन समय में जबकि पुस्तकालय आंदोलन लगभग बिखर चुका है और पढ़ने की संस्कृति नष्ट हो चुकी है, एक दूरदराज के गाँव में इसका होना सुकून की बात है और इससे जाहिर होता है कि अभी सबकुछ नष्ट नहीं हुआ है। नयी से नयी किताबों की उपलब्धता से जाहिर होता है कि इसके इतिहास की तरह इसका वर्तमान भी गौरवशाली है। यह बिहार में एक नये पुस्तकालय आंदोलन का अग्रदूत बने इसी कामना के साथ।
हर बार जब मैं यहाँ आता हूँ मुझे एक नया अनुभव होता है। देहाती पृष्ठभूमि में यह एक ऐसा सांस्कृतिक केन्द्र है जिसे देखे बिना विश्वास करना संभव नहीं है। भवन निर्माण से लेकर आंतरिक सजावट तक में एक ऐसा सौंदर्यबोध दिखाई देता है, जिसकी मिशाल मुश्किल से देखने को मिलती है।
गाँव को शहर बनाने की कल्पना की जाती है किन्तु गोदरगावाँ आकर मानना पड़ा कि यह वह ग्रामीण क्षेत्र है, जो शहर की व्यवस्था के लिये एक उदाहरण, एक प्रेरणास्रोत बन सकता है। विप्लवी पुस्तकालय में व्यवस्था का वह रूप दिखाई पड़ता है, जो किसी बड़े शहर के पुस्तकालय के लिये भी उदाहरण का काम कर सकता है। मुझे यहाँ बुलाकर मुझसे सन्त कवयित्री मीरा बाई की मूर्ति का अनावरण कर जो सम्मान दिया गया है, वह स्मृति में सदा रहेगा। यहाँ का वातावरण, यहाँ का माहौल, यहाँ के लोगों का व्यवहार, लोगों की निश्छलता सबकुछ स्मरणीय रहेगा। एक मीठी याद लेकर मैं इस गाँव से प्रस्थान कर रही हूँ।
गोदरगावाँ जैसे प्रसिद्ध कस्बे में आना-इस गाँव को देखना, इसकी खेती को देखना, हरे-भरे पेड़ों को देखना मेरे लिये एक अलग तरह का उत्तेजक अनुभव रहा है। यहाँ का विप्लवी पुस्तकालय जो 1931 से संचालित है। यह हमारे इतिहास हमारे क्रांतिकारी संघर्षों का साक्षात स्पर्श है। मैं चाहूँगा कि दूसरे प्रदेशों में अपनी विरासत को संभालने का इसी तरह प्रयास होना चाहिये। इस पुस्तकालय में जो साहित्य है और इस पुस्तकालय ने जो संस्कृति विकसित की है वह वरेण्य है और उसका अनुकरण किया जाना श्रेयस्कर है।
यहाँ की लोगों ने जनप्रतिनिधियों ने इस पुस्तकालय के माध्यम से जो जन चेतना भाईचारा विकसित किया है उसका हम स्वागत करते है। यहाँ लगभग सभी साहित्यकारों के चित्र हैं ही क्रांतिकरी विरासत के बचे हुये अन्य रचनाकारों का भी चित्र शामिल किया जाना जरूरी समझता हूँ।
गोदरगावाँ आना अविभूत कर गया। प्रिय भाई राजेन्द्र राजन ने हैदराबाद में विप्लव पुस्तकालय की चर्चा की थी, जिसे मैंने हल्के से लिया था। लेकिन यहाँ ना आता तो शायद कुछ महत्त्वपूर्ण छूट गया का आभास होता। बहरहाल प्रलेस का यह राष्ट्रीय अधिवेशन गोदरगावाँ से एक बड़ी प्रेरणा लेगा ही। मेरे मन में कुलबुलाते कई प्रश्नों को यहाँ आने से दिशा मिली है, जिसके लिये मैं गोदरगावाँ के लोगों को लाल सलाम करता हूँ।
प्रलेस का गोदरगावाँ सम्मेलन एक ऐतिहासिक घटना है। मैंने अनुभव किया कि यह अभिप्राय है इस नव साम्राज्यवाद एवं सांस्कृतिक उपभोक्तावाद के प्रतिरोध के कथन का, जो लोगों पर मीडिया के द्वारा थोपा जाता है। गांवों की ओर लौटना वास्तव में भारत के असली लोगों की ओर लौटना है। वास्तव में यह विषय-वस्तु श्रोताओं और लेखकों का है। अत्यंत सुन्दर पुस्तकालय, जिसे गोदरगावाँ में स्थापित किया गया है और इस पुस्तकालय से गाँव के सामान्य लोगों के द्वारा साहित्य ग्रहण करने की प्रक्रिया से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ।
मैंने पहले भी और आज भी इस पुस्तकालय को देखा। यह एक बड़ी लाइब्रेरी हैै। इसमें बहुत सारी किताबें हैं। लेखकों के चित्र हैं गोया यह ज्ञान का भंडार है और वह भी देहाती क्षेत्र में, हरे-भरे पेड़ों और िज़न्दा दिल लोगों के बीच। पूरे देश में, ग्रामीण क्षेत्र में ऐसा पुस्तकालय शायद ही कहीं हो। इसके लिये यहां के लोग विशेषकर कवि-लेखक श्री राजेन्द्र राजन और उनके सहयोगी बधाई के पात्र हैं। मैं इस पुस्तकालय के लिए शुभकामना व्यक्त करता हूँ।
आज ‘विप्लवी पुस्तकालय’ को देखकर विस्मय एवं हर्ष दोनों हुआ। देहाती क्षेत्र मेें ऐसी संस्था-इसका भव्य स्वरूप एवं इसकी पुस्तकों की परिसम्पत्ति, सहज ही विस्मय उत्पन्न करती है। हर्ष इस कारण कि श्री राजन के सत्प्रयासों के प्रतिफल के रूप में यह संस्था निरन्तर फलती-फूलती जा रही है। ईश्वर करे कि यह संस्था इसी भांति बढ़ती जाए। मैं श्री राजन और उनके सहयोगियों को इस स्तुतय कार्य के लिए साधुवाद देता हूँ।
विप्लवी पुस्तकालय की एक भाषिक तात्विक आत्मा है-चेतना संसार में विप्लव पैदा करना दो चीजें इस पुस्तकालय में विशिष्ट नज़र आईं-जहाँ तक मेरी जानकारी है बिहार के किसी भी पुस्तकालय में मां भारती के मनीषियों के इतने चित्र कहीं भी नहीं हैं पुस्तकों से पहले मनीषिया हैं चित्र से स्फूर्त चेतना क्रांतिकारी संजीवनी की पहली सीढ़ी है।
पुस्तकालय में आते ही कबीर, मीरा, प्रेमचंद और दूसरी ओर अमर शहीद भगत सिंह की मूर्तियाँ दिमाग में कुछ जगा जाती है,
राजन जी का और सहयोगियों का सह संकल्पित प्रयास अपूर्व है। उनकी प्रतिबद्धता को सलाम
विप्लवी पुस्तकालय के बारे में लंबे समय से सुनते आया था। कई बरसों से यहाँ आने की इच्छा थी, लेकिन किसी न किसी कारण से पूरी नहीं हो पाई थी। 22 मार्च, 2013 की रात, जब अन्ततः आया तो जो कल्पना थी, उससे कई गुना अधिक पाया। मैं नहीं जानता कि भारत में अन्यत्र कहीं ऐसास केन्द्र है, जिसके माध्यम से परिवर्तनकामी जनता ने अपनी आशा-आकांक्षा, जीवन मूल्यों को अभिव्यक्ति दी हो। यह ऐसा साहित्य तीर्थ है, जहाँ इस देश के साहित्य मनीषियों की अपनी अभिलाषाएं डुबकियाँ लगा रही हैं।
विप्लवी पुस्तकालय सारे देश के विचारशील समाज के लिए एक आदर्श स्थान है और इसका अनुकरण जितनी दूर-दूर हो सके, उतना अच्छा। साहित्य-संस्थाओं को चाहिए कि युवाओं को विशेष रूप से प्रोत्साहित कर यहाँ भेजा जाए ताकि वे प्रेरणा पा सकें और हमारे मनीषियों के स्वप्न को जीवित रखने और चरितार्थ करने की दिशा में कदम आगे बढ़ा सकें।
कल भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के बलिदान दिवस पर संपन्न कार्यक्रमों मेें आम जनता ने जिस स्फूर्ति व उत्साह के लिए साथ शिरकत की, वह भी अपने आप में एक आश्वस्त करने वाला अनुभव था।
एक जनोन्मुखी विकल्प कैसे तैयार हो सकता है, गोदरगावाँ उसकी प्रयोगशाला है।
कॉमरेड राजेन्द्र राजन व इस गाँव के सभी जनों को मैं सलाम करता हूँ।
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